Wednesday, January 9, 2008

मत रो माँ


मत रो माँ

ये तुम्हारा कैसा हठ है दुराग्रह है,

बिछुड़ने का यह वक्त कितना कठिन है,

मेरे सामने बिखरी चुनौती भरी जिंदगीं मुझे पुकार रही है,

मुझे जाना ही पड़ेगा,

मैं जरुर जाऊंगी,

इसलिए मेरी माँ,

मेरी प्यारी माँ मत रोओ।


देखो मुर्गे ने बांग दे दी है

दूर से आती रोशनी की किरणों पर मेरा नाम लिखा है?

मैं उस लक्ष्य की ओऱ जा रही हूं,

जो हम सबका है,

तुम्हारा भी।


मेरे साथी पहले ही जा चुके हैं

उनमें से कुछ कभी नहीं लौटेगें।

हमारे बगीचे के वे प्यारे भोले गुलाब औऱ दूसरे फूल,

मेरे स्कूल के साथी,

सारे साथी युद्ध के मैदान में

हमारे महान पुरखों की तरह लड़ते-लड़ते गिर गए।

वे सब मुझे पुकार रहे हैं,

उनकी पुकार में करुणा नहीं है,

मुझे अपने आँसुओं की जंजीर में मत बाँधो।


देखो दूर,

बहुत दूर युवाओं की टोली मरा आह्वान कर रही है

मत रोओ माँ,

मुझे मत रोको,

मुझे जाने दो।

इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर

मैंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में केवल आतंक

और दहला देने वाली हिंसा देखी है।

मैं जानती हूं अब मेरी पीठ पर राइफल को ही रहना है।


अगर वक्त मुझे यूं अनदेखा करके चला गया

तो भला

मैं लम्बी जिंदगी का क्या करुगीं?

मेरे बहुत से साथी भोर से पहले ही

रोशनी की तलाश में मारे जा चुके हैं।

मुझे भी जाना होगा,

मैं नही चाहती मेरा अजन्मा बच्चा

वह सब देखे और भोगे,

जो मैंने देखा है और भोगा है।

अपना ध्यान रखना माँ।


#फेजेका मैकोनीज

Saturday, November 24, 2007

तुम सब मौन क्यों हो ?????


तस्लीमा नसरीन को पश्चिम बंगाल से निकाला जाना एक बार फिर यही साबित करता है कि सत्ता पक्ष जब लोगों के मुद्दों पर बात नहीं कर सकता तो वह उन्हे धर्म औऱ जाति जैसे मुद्दों पर भटकाकर उनके संघर्ष को कुन्द करने का प्रयास करता है। नंदीग्राम के संन्दर्भ में भी यही हुआ है। इस पूरे प्रकरण में सबसे बडी दुख की बात है कि अपने आपको प्रगतीशील करने वाले लेखक औऱ अकादमिशियनों ने भी इस पूरी घटना पर मौन साधे रखा।